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Saturday, June 26, 2010

"बचपन "



खुदसे चुराकर वक़्त चंद्द लम्हों का .....चलो कहीं दूर जाएँ .....
ढलता सूरज देखें ....चेहरे पर चांदनी जगाएं ....
झील कनारे जाएँ और खुलके कुछ गुनगुनाएं ......
बहुत हुआ ये दुनियादारी का खेल.... आब फिर बचपन ले आएँ....
कितने दिनों तक यूँ ही ओढे ... बेजान रंगों के दोशाले ....
आब तो वक़्त है इसे इन्द्रधनुष के रंगों मे सजाएँ...
भीगें खुलकर बरसते मेघों में .....छीकते हुए घर वापस आएँ ...
फिर मम्मी की डांट के डर से....कोई नया बहाना बनाएँ......
आब तो खुद से ही हर खेल मे ....कच्ची रोटी बन्न जाएँ......
सपनो मे आब गुड्डे -गुड़ियों और अच्छा खाना ही आए...
करें जो भी वो हो अपनी मर्ज़ी का ....कोई न रोक - टोक लगाएँ......
खुदसे चुराकर वक़्त चंद्द लम्हों का ......चलो कहीं दूर जाएँ....
खुदसे ही खुदका बचपन हम वापस ले आएँ....

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